“”ध्यान से देखो  मैं भी मजदूर हूं””

कविता लेख(कहानी)
देखो मैं मजदूर हूँ फटा पुराना लिबास है
किस्मत से मजबूर हूँ लोगों की जरूरत हूं
देखो सपनों के आसमान में जीता हूँ प्यारे
सभी के उम्मीदों के आँगन को सींचता हूँ
दो वक्त की रोटी के लिये मेहनत करता हूं
देखो मैं अपने स्वभिमान को नहीं बेचता हूँ
तन ढकने के लिये फटा पुराना लिबास है
कंधों पर जिम्मेदारी है जिसका मुझे एहसास हैं
खुला आकाश है छत मेरा बिछौना मेरा धरती है
घास-फूस के झोपड़ी में सिमटी अपनी हस्ती है
गुजर रहा जीवन अभावों में जो दिख रहा  है
देखो आत्मसंतोष ही मेरे जीवन का लक्ष्य है
गरीब लाचारी से जूझ कर  हंसना भूल चुका हूं
अनगिनत तनावों से  आंसू पीकर मजबूत बना हूं
देखो मैं मजदूर हूं फटा पुराना लिबास है अपना ll

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