भारत के सभी राज्यों में भिक्षा वृत्ति पर सख्त कानून के साथ अंकुश लगाने की आवश्यकता _

लेख लेख(कहानी)
[ 21वीं सदी में जा रहा हमारा देश एक तरफ कम्प्यूटर, इंटरनेट की दिशा में प्रगतिशील है व विकास के बड़े-बड़े दावे कर रहा है, वहीं देश में एक तबका भीख मांगकर पेट भरता हो तो यह हम सभी के लिये गंभीर चिंतन का विषय है। भारत में कुछ जनजातीय समुदाय भी आजीविका के लिये परम्परा के तौर पर भिक्षावृत्ति को अपनाते हैं। लेकिन भीख मांगने वाले सभी लोग इसे ऐच्छिक रूप से नहीं अपनाते। दरअसल गरीबी, भुखमरी तथा आय की असमानताओं के चलते देश में एक वर्ग ऐसा भी है, जिसे भोजन, कपड़ा और आवास जैसी आधारभूत सुविधाएँ भी प्राप्त नहीं हो पातीं। यह वर्ग कई बार मजबूर होकर भीख मांगने का विकल्प अपना लेता है। ]
भिक्षावृत्ति भारत के माथे पर ऐसा कलंक है जो हमारी आर्थिक तरक्की के दावों को खोखला बनाता है। भीख मांगना कोई सम्मानजनक पेशा नहीं वरन अनैतिक कार्य और सामाजिक अपराध है। सरकार ने इसे कानूनन अपराध घोषित कर रखा हैं। फिर भी यह लाइलाज रोग दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। हमारे देश में भिखारियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। भारत में कोई भूखा न रहे और भूख के कारण अपराध न करे इसीलिए खाद्य सुरक्षा अधिनियम का प्रस्ताव लाया गया था। भीख मांगना सभ्य समाज का लक्षण नहीं है मगर आत्मसम्मान तथा स्वाभिमान जागृत किए बिना इससे किसी को विमुख नहीं किया जा सकता। सरकार को शिक्षा के प्रसार पर बल देना चाहिए। शिक्षा ही व्यक्ति को संस्कारित कर उसे स्वाभिमानी बना सकती है।
भारत के संविधान में भीख मांगने को अपराध कहा गया है। इसके बावजूद बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक भीख मांगते नज़र आते हैं। इनके खिलाफ न तो राज्य सरकार को कदम उठाती है न केंद्र। एक रिकॉर्ड के अनुसार देश में 44 हज़ार बच्चे हर साल गायब होते हैं। उनमें से एक चैथाई भी नहीं मिलते। एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि भारत में बाल भिखारी अपनी मर्जी से भीख नहीं मांगते। वे संगठित माफिया के हाथों की कठपुतली बन जाते हैं। तमिलनाडु, केरल, बिहार, नई दिल्ली और ओडिशा में यह एक बड़ी समस्या है। बाल अधिकारों के ऐक्टिविस्ट स्वामी अग्निवेश का कहना है, ‘भारत में भीख माफिया बहुत बड़ा उद्योग है। इससे जुड़े लोगों पर कभी आंच नहीं आती। इस मामले में कानून बनाने वालों और कानून तोड़ने वालों की हमेशा मिलीभगत रहती है। इन हालात से निपटने के लिए सिस्टम को ज्यादा जवाबदारी निभानी चाहिए।
उत्तराखंड में भीख मांगने पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। समाज कल्याण विभाग ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी है। सरकार ने उत्तर प्रदेश भिक्षावृत्ति प्रतिषेध अधिनियम 1975 की धाराओं में संशोधन किया है। इसके साथ ही उत्तराखंड अब उन अन्य 20 राज्यों और दो संघ शासित प्रदेशों की सूची में शामिल हो गया है, जिन्होंने भीख पर प्रतिबंध लगाया है।
किशोर न्याय अधिनियम के तहत अभी तक 14 साल तक के बच्चों से भिक्षावृत्ति को संज्ञेय अपराध माना गया था और इस पर पूरी तरह से रोक थी, लेकिन अब सभी उम्र के लोगों पर सार्वजनिक स्थलों में भीख मांगने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई है। हालांकि देश के कई अन्य राज्यों ने भीख मांगने पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके बाद से बीते वर्षों में उत्तराखंड में भिखारियों की संख्या में वृद्धि हुई है।
बालश्रम या भिक्षावृत्ति में बच्चों को झोंकने वाले अगर पैरेंट्स के अलावा दूसरे लोग भी होंगे तो उनके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की जाएगी। डिस्ट्रिक्ट टास्क फोर्स अब तक सिर्फ चाइल्ड लेबर पर ही फोकस करती थी, अब उसके काम का दायरा बढ़ जाएगा। भिक्षावृत्ति करते बच्चे या सड़कों पर गुब्बारे या अन्य चीजें बेचने वाले बच्चों को भी टास्क फोर्स रेस्क्यू करेगी।
उत्तराखंड में भिक्षावृत्ति पर रोक के बावजूद जहां-तहां भिखारी देखे जा सकते हैं। हालांकि इस दिशा में कभी प्रशासन की ओर से कोई खास कार्रवाई होती नहीं दिखी। लेकिन अब चाइल्ड बैगर्स को लेकर जरूर कार्रवाई हो सकेगी। टास्क फोर्स की ओर से सैटरडे को कार्रवाई की पूरी तैयारी थी लेकिन टीम के कुछ मेंबर्स के कार्यो में बिजी होने के चलते ये कार्रवाई नहीं हो सकी। हालांकि पहले दिन घंटाघर सहित आसपास के एरिया को चुना गया था। अब मंडे को इस दिशा में कार्रवाई की रूपरेखा तैयार की जा रही है। यदि कोई पैरेंट्स अपने ही बच्चे को पहचानने से मुकरता है तो हाई कोर्ट के आदेशों के अनुसार ऐसे पैरेंट्स का डीएनए टेस्ट किया जाएगा। ताकि सच सामने आ सके, फिर ऐसे पैरेंट्स के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी
भारत के संविधान में भीख मांगने को अपराध कहा गया है। फिर भी देश की सड़कों पर लाखों बच्चे आखिर कैसे भीख मांगते हैं? बच्चों का भीख मांगना अपराध ही नहीं है, देश की सामाजिक सुरक्षा के लिए खतरा भी है। हर साल कितने ही बच्चों को भीख मांगने के धंधे में जबरन धकेला जाता है। ऐसे बच्चों के आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने की भी आशंका होती है। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार देश में हर साल 48 हजार बच्चे गायब होते हैं। उनमें से आधे कभी नहीं मिलते हैं। उन बच्चों में से काफी बच्चे भीख मंगवाने वाले गिरोहों के हाथों में पड़ जाते हैं। हर साल हजारों गायब बच्चे भीख के धंधे में झोंक दिये जाते हैं।
भारत में ज्यादातर बाल भिखारी अपनी मर्जी से भीख नहीं मांगते। वे संगठित माफिया के हाथों की कठपुतली बन जाते हैं। इन बच्चों के हाथों में स्कूल की किताबों की जगह भीख का कटोरा आ जाता है। भारत में भीख माफिया बहुत बड़ा उद्योग है। इससे जुड़े लोगों पर कभी आंच नहीं आती। हमारे देश की सबसे बड़ी प्राथमिकता बाल भिखारियों पर रोक लगाना होनी चाहिए। इसके लिए सामाजिक भागीदारी की जरूरत है। सामाजिक भागीदारी की बदौलत ही केंद्र और राज्यों की सरकारों पर बाल भिखारियों को रोकने के लिए दबाव डाला जा सकेगा। इस दबाव के कारण सरकारें अपने-अपने स्तर पर कार्रवाई करें तो इस समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।
भिखारियों को काम में लगाये जाने की आवश्यकता है। और कुछ नहीं तो रोजाना दो वक्त का मुफ्त खाना देकर इन सारे भिखारियों को विभिन्न प्रकार का प्रशिक्षण देकर सरकार के रोजगारपरक अभियानों से जोड़ा जाना चाहिए। सरकार द्वारा चलाये जा रहे कौशल विकास कार्यक्रम से भिखारियों को स्वरोजगार परक प्रशिक्षण दिलवाकर इनको रोजगार से जोड़े तो इससे भीख मांगने की प्रवृति पर रोक लग सकती है।

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